APJ Abdul Kalam के मिसाइल मैन बनने की कहानी| The NK Lekh
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Story Of President Of The People On India - APJ Abdul Kalam |
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम : द मिसाइल मैन
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (1931–2015) – भारतीय वैज्ञानिक और भारत के 11वें राष्ट्रपति, जिन्हें “मिसाइल मैन ऑफ इंडिया” की उपाधि प्राप्त है। डॉ. कलाम को 1940–50 के दशक में मिसाइल और स्पेस प्रौद्योगिकी के अग्रदूतों के रूप में मान्यता मिली थी। उनके नेतृत्व में भारत ने स्वदेशी प्रक्षेपण यान (SLV-III) और बैलिस्टिक मिसाइल तकनीकों का विकास किया, जिससे उन्हें यह खिताब मिला।
डॉ. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम, तमिलनाडु में एक मध्यमवर्गीय मत्स्य एवं मुस्लिम परिवार में हुआ था। बचपन में आर्थिक कठिनाइयाँ होने के बाद भी उन्होंने कड़ी मेहनत की – समाचार पत्र बेचकर शिक्षा के खर्च जुटाए और गणित व विज्ञान में अपना रूझान गहरा किया। उन्होंने थिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज से 1954 में भौतिकी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और 1955 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। कलाम के अध्ययन के दौरान उनके गुरु-विक्रम साराभाई, सी.वी. रामन और सत्यधरन जैसे प्रख्यात वैज्ञानिकों से प्रेरणा मिली। 1960 में MIT से उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) में वैज्ञानिक के रूप में अपना करियर आरंभ किया।
इसरो में योगदान एवं SLV-III परियोजना
1969 में डॉ. कलाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में स्थानांतरित हुए, जहाँ उन्हें SLV-III (Satellite Launch Vehicle-III) परियोजना का परियोजना निर्देशक बनाया गया। यह भारतीय पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान था। 18 जुलाई 1980 को SLV-III की चार-चरणीय ठोस प्रणोदक यान ने श्रीहरिकोटा रेंज (SHAR) से रोहिणी उपग्रह (RS-1) को कक्षा में स्थापित किया। इस सफलता के साथ भारत छठे अंतरिक्ष-क्षेत्रीय राष्ट्र के रूप में उभरा। इस प्रक्षेपण ने भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित किया।
SLV-III परियोजना की पूर्ण सफलता ने बाद की लॉन्चर परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त किया। कलाम ने इसरो में आगे बढ़कर पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV), ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ASLV) एवं भूस्थिर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) जैसी उन्नत प्रणालियों के विकास में अहम भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में ISRO ने उपग्रह प्रक्षेपण प्रौद्योगिकी को मजबूती प्रदान की, जिससे भारत को स्वतंत्र रूप से उपग्रह प्रक्षेपण की सुविधा प्राप्त हुई। SLV-III परियोजना में कलाम की उपलब्धियाँ और नेतृत्व को देखते हुए उन्हे “मिसाइल मैन” की शुरुवाती मान्यता मिली, क्योंकि इसी तकनीक का उपयोग बाद में बैलिस्टिक मिसाइलों में किया गया।
DRDO में योगदान और मिसाइल विकास (IGMDP)
1982-83 में डॉ. कलाम पुनः DRDO में लौटे और उन्हें निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) का नेतृत्व सौंपा गया। IGMDP के अन्तर्गत भारत ने पांच प्रमुख मिसाइल परियोजनाएँ विकसित कीं: पृथ्वी (Prithvi), अग्नि (Agni), आकाश (Akash), त्रिशूल (Trishul) और नाग (Nag)। इन परियोजनाओं के लिए कलाम को DRDO में DRDL निदेशक नियुक्त किया गया। इस कार्यक्रम के तहत एक साथ सभी मिसाइलों पर काम करते हुए इन्हें तेजी से विकसित किया गया।
इन मिसाइल परियोजनाओं में डॉ. कलाम की प्रमुख भूमिकाएँ थीं:
पृथ्वी मिसाइल (Prithvi): सतह-से-सतह छोटी श्रेणी (Short-Range) बैलिस्टिक मिसाइल। पृथ्वी परियोजना 1983 में शुरू हुई और इसका पहला सफल परीक्षण 25 फरवरी 1988 को श्रीहरिकोटा से किया गया। इसकी रेंज 150–300 किमी थी तथा यह परमाणु-मग्न युद्धास्त्र ले जाने में सक्षम थी। यह भारत की पहली स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल थी।
अग्नि मिसाइल (Agni): मध्यम-दूरी (Intermediate-Range) बैलिस्टिक मिसाइल। अग्नि परियोजना को पहले एक प्रक्षेपण यान के रूप में देखा गया, पर बाद में इसे बैलिस्टिक मिसाइल के रूप में विकसित किया गया। इस कार्यक्रम में अग्नि के पहले प्रक्षेपण में 1989 में सफलता मिली। अग्नि परियोजना में SLV-III की तकनीक का उपयोग किया गया, जो इसकी मिसाइल प्रक्षेपण प्रक्रिया में अहम था। बाद में अग्नि श्रृंखला ने विभिन्न दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें विकसित कीं।
आकाश मिसाइल (Akash): मध्यम दूरी की सतह-से-वायु मिसाइल (Surface-to-Air Missile)। यह कार्यक्रम IGMDP के अंतर्गत विकसित किया गया और इसकी हैरान करने वाली विशेषता यह है कि यह समग्र स्वदेशी प्रणाली पर आधारित है। आकाश मिसाइल की मारक क्षमता लगभग 30 किमी है। इसकी पहली फ्लाइट टेस्ट 2005 में हुई और बाद में भारतीय वायुसेना और थल सेना में इसका सफल उपयोग किया गया। आकाश परियोजना ने भारतीय रक्षा क्षेत्र को अनेक दृष्टियों से आत्मनिर्भर बनाया।
त्रिशूल मिसाइल (Trishul): लघु दूरी की सतह-से-वायु मिसाइल (Short-Range SAM) जिसका उद्देश्य समुद्री और स्थलीय लक्ष्यों की रक्षा करना था। त्रिशूल का विकास भी IGMDP के अंतर्गत किया गया। इसकी मारक रेंज लगभग 12 किमी थी और इसे मोबाइल वाहनों से दागा जा सकता था। हालांकि बाद में राजनीतिक और तकनीकी कारणों से त्रिशूल परियोजना को 2008 में बंद कर दिया गया।
नाग मिसाइल (Nag): तीसरी पीढ़ी की “फ़ायर-एंड-फ़ॉरगेट” एंटी-टैंक मिसाइल (Anti-Tank Guided Missile)। नाग मिसाइल IGMDP के ATGM उपप्रोग्राम के तहत विकसित की गई। यह सभी मौसम में काम करने वाली मिसाइल है और इसका मारक रेंज 0.5 से 4 किमी तक है। नाग भारत की पहली हीट-सीकिंग एंटी-टैंक मिसाइल थी और इसमें आधुनिक हीट-एक्सप्लोसिव युक्त WARHEAD लगा हुआ है जो ERA (Explosive Reactive Armor) वाले टैंकों को भी तहस-नहस कर सकता है। नाग का विकास DRDL (Hyderabad) में हुआ और इसकी पहली सफल फायरिंग 2005 में हुई।
इन सभी परियोजनाओं के नेतृत्व में डॉ. कलाम की वैज्ञानिक दृष्टि और प्रबंधन कौशल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके योगदान की वजह से IGMDP के तहत ये पाँचों मिसाइल सफलतापूर्वक विकसित हुईं। मिशन के दौरान कलाम को प्रायः “मिसाइल मैन ऑफ इंडिया” के नाम से भी संबोधित किया गया, क्योंकि उन्होंने भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया।
DRDO द्वारा विकसित मध्यम दूरी की सतह-से-वायु मिसाइल (आकाश मिसाइल) के परीक्षण का दृश्य। डॉ. कलाम के नेतृत्व में IGMDP के अंतर्गत इन मिसाइलों का सफलतापूर्वक विकास हुआ।
पोखरण-II परमाणु परीक्षणों में भूमिका
1990 के दशक में डॉ. कलाम रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार बने तथा बाद में प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (Principal Scientific Adviser) की भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंने भारत के हथियारी मिसाइल प्रणालियों को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मई 1998 में, पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के तहत, उन्होंने पोखरण स्थित परीक्षण स्थल में पाँच न्यूक्लियर बमों के सफल परीक्षण (पोखरण-2) में प्रमुख समन्वयक के रूप में काम किया। इन परीक्षणों ने भारत को दुनिया के परमाणु शक्तिक्षेत्र में शामिल कर दिया। पोखरण-II में अपनी भूमिका के लिए उन्हें राष्ट्रीय नायक के रूप में देखा गया और इसी सफलता ने उनके “मिसाइल मैन” के रूप को और भी पुष्ट किया।
पुरस्कार एवं सम्मान
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में Dr. कलाम के योगदान को भारत सरकार ने अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया। उन्हें 1981 में पद्म भूषण and 1990 में पद्म विभूषण मिला और 1997 में उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से नवाजा गया। इन उच्चतम पुरस्कारों के अतिरिक्त, उन्हें अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों, डॉक्टरेट की मानद उपाधियों और विज्ञान, शिक्षा व समाज सेवा के अन्य सम्मान भी प्राप्त हुए।
भारत रत्न (1997): सर्वोच्च नागरिक सम्मान
पद्म विभूषण (1990): उच्च नागरिक सम्मान
पद्म भूषण (1981): नागरिक सम्मान
निष्कर्ष
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। उनके आत्मविश्वास, ईमानदारी और वैज्ञानिक दृष्टि ने भारत को मिसाइल और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाई। उनके प्रारंभिक जीवन से लेकर ISRO व DRDO में उपलब्धियों, SLV-III तथा IGMDP परियोजनाओं में सफलता, तथा पोखरण-II परीक्षणों में योगदान तक की यात्रा ने उन्हें ‘मिसाइल मैन ऑफ इंडिया’ के रूप में प्रतिष्ठित किया। आज उनका दृष्टिकोण और योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
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The NK Lekh (Neeraj Vishwakarma)

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