15 अगस्त पर बोलें ये जोरदार भाषण। Best Deshbhakti Speech In Hindi | Happy Independence Day | The NK Lekh
15 अगस्त पर बोलें ये जोरदार भाषण। Happy Independence Day | Best Deshbhakti Speech In Hindi | The NK Lekh
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दोस्तों स्वागत है आपका इस deshbhakti speech के इस पेज पर। यहां पर आपको मिलेगा अलग–अलग टॉपिक पर आधारित और देशभक्ति से जुड़ा हुआ ढेरों भाषण जिसका प्रयोग आप स्वंतत्रता दिवस, 26 जनवरी या फिर किसी विशेष मौके के लिए कर सकते हैं।
धन्यवाद!
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Deshbhakti Speech| The NK Lekh |
भाषण- 1
सम्माननीय अभिभावक, आदरणीय अतिथिगण, शिक्षकगण और मेरे प्यारे भाइयों-बहनों,
आज का दिन सिर्फ कैलेंडर की तारीख़ नहीं है। ये वो दिन है, जब इस मिट्टी ने अपनी साँसों में आज़ादी की खुशबू महसूस की थी। आज का दिन हमें याद दिलाता है कि हमारे पूर्वजों ने न तो मौत से डर महसूस किया, न ही तानाशाही के आगे सिर झुकाया।
सोचिए, वो दौर जब हर घर में अँधेरा था, और उम्मीद की लौ सिर्फ कुछ वीरों के सीने में जल रही थी। किसी ने हँसते-हँसते फाँसी का फंदा चूमा, किसी ने गोली के जख्म को मातृभूमि का आशीर्वाद समझा। दोस्तों हमें ये आजादी विरासत में नहीं मिली है, ये तो ख़ून, पसीने और आँसुओं की कीमत पर खरीदी गई है। लेकिन आज सवाल ये है कि क्या हम उस बलिदान का मोल चुका पाए हैं? आज भी सड़कों पर भूख से जूझते बच्चे, आज भी बुराई के आगे झुकते लोग, क्या ये वही भारत है, जिसका सपना भगत सिंह, बिस्मिल और गांधी जी ने देखा था?
दोस्तों, आज़ादी सिर्फ झंडा फहराने का नाम नहीं है, आज़ादी है भ्रष्टाचार को ठुकराने की ताक़त, आज़ादी है महिलाओं को बराबरी का हक़ दिलाने की जिम्मेदारी, आज़ादी है अपने काम से अपने वतन को ऊँचाई तक पहुँचाने की क़सम।
तो आइए, आज इस पवित्र दिन पर, हम सिर्फ नारा न लगाएँ बल्कि अपने दिल में ये संकल्प लिख लें कि जब तक इस देश की हवा में हमारी साँसें चल रही हैं, हम हर सांस मातृभूमि के नाम करेंगे।
जय हिन्द! जय भारत!
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भाषण - 2
आज यहां उपस्थित सभी महानुभाव, शिक्षकगण, दूर दराज से आए सज्जन और मेरे प्यारे सहपाठियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
साथियों आज हम जिस खुले आसमान के नीचे साँस ले रहे हैं, जिस धरती पर गर्व से खड़े हैं, वो हमें ऐसे ही नहीं मिली। इसके पीछे अनगिनत बलिदान, तपस्या और संघर्ष की कहानी छिपी है। लेकिन आज मैं सिर्फ अतीत की बात नहीं करना चाहता, मैं बात करना चाहता हूँ भविष्य की, और उस भविष्य की, जो हमारे अपने हाथों में है।
हम अक्सर कहते हैं, "हमारा देश महान है।" लेकिन महान कौन बनाता है? केवल नेता, केवल सैनिक, केवल सरकार? नहीं, देश की असली ताक़त हम और आप सब भी हैं। आज़ादी हमें 79 साल पहले मिली थी, लेकिन सच्ची आज़ादी तभी पूरी होगी जब हम अपने सोच की बेड़ियाँ भी तोड़ दें।
आज भी हम कई बार दूसरों पर निर्भर रहते हैं कि कोई आएगा और बदलाव करेगा। लेकिन सच यह है कि वह 'कोई' हम ही हैं। अगर हम चाहते हैं कि भारत आगे बढ़े, तो हमें अपनी जिम्मेदारी खुद निभानी होगी। मेहनत में कमी, ईमानदारी में समझौता, और सच्चाई के सामने चुप रहना ये आदतें हमें पीछे धकेलती हैं।
देश नक्शे पर बनी सीमाओं का नाम नहीं है, देश हमारे काम, हमारे विचार और हमारे कर्म का नाम है। हर वह व्यक्ति जो अपने कार्य से भारत का नाम ऊँचा करता है, वह सच्चा देशभक्त है।
इसलिए आज, इस तिरंगे के सामने हम संकल्प लें कि हम केवल सपने नहीं देखेंगे, उन्हें पूरा करने की हिम्मत भी दिखाएँगे। हम अपने हर कर्म में देश के हित को प्राथमिकता देंगे। ताकि आने वाली पीढ़ियाँ यह कहें –"हाँ, यही वह लोग हैं जिन्होंने भारत को सचमुच महान बनाया।"
भारत का भविष्य किसी किताब में पहले से लिखा नहीं है, उसे हम अपने कर्मों से लिखेंगे। और वह कहानी गर्व, ईमानदारी और प्रगति की होगी।
जय हिन्द! जय भारत!
🙏🎙️🙏
भाषण - 3
दोस्तों सबसे पहले मैं आप सबों को 79वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूं।
आज जब हम इस तिरंगे के नीचे खड़े हैं, तो हमें सिर्फ अपनी आज़ादी ही नहीं, बल्कि उस अनोखी पहचान पर भी गर्व होना चाहिए, जो भारत को दुनिया में सबसे अलग बनाती है जो है हमारी विविधता में एकता।
हमारा देश कई भाषाओं, धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं का संगम है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, असम से गुजरात तक पहनावा बदलता है, बोली बदलती है, खान-पान बदलता है, लेकिन एक चीज़ कभी नहीं बदलती और वो यह है कि हम भारतीय हैं।
आज का समय हमें यह याद दिलाता है कि एकता सिर्फ कोई आदर्श वाक्य नहीं है, यह हमारी ज़रूरत है। अगर हम बँटेंगे, तो हमारी ताक़त आधी रह जाएगी, लेकिन अगर हम साथ खड़े होंगे, तो दुनिया की कोई शक्ति हमें हरा नहीं सकती।
आज के युवा, खासकर सोशल मीडिया के युग में, विचारों में मतभेद रखना स्वाभाविक है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मतभेद का मतलब दुश्मनी नहीं होता। देश की प्रगति के लिए हमें बहस करनी चाहिए, लेकिन बिखरना नहीं चाहिए।
हमारी विविधता हमारी कमजोरी नहीं, हमारी पूँजी है। जैसे तिरंगे में तीन रंग मिलकर एक झंडा बनाते हैं, वैसे ही हम सब मिलकर एक भारत बनाते हैं। अगर हम इस विविधता को सम्मान के साथ अपनाएँ, तो हम न केवल अपने देश को मज़बूत करेंगे, बल्कि दुनिया के लिए एक मिसाल भी बनेंगे।
तो आइए, इस स्वतंत्रता दिवस पर हम वादा करें कि चाहे हालात कैसे भी हों, हमारे दिलों में तिरंगे के तीन रंग हमेशा एक साथ रहेंगे और ये रंग सिर्फ झंडे में नहीं, हमारे विचारों और कर्मों में भी झलकेंगे।
जय हिन्द! जय भारत!
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भाषण – 4
माननीय मुख्य अतिथिगण, मंच पर उपस्थित आदरणीय जनप्रतिनिधि, उपस्थित शिक्षकों, छात्रों, और मेरे प्यारे भाइयों एवं बहनों, आप सभी को मेरा सादर प्रणाम और स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
आज हम अपने देश की तरक्की, अपनी आज़ादी और अपने गौरव की बातें करते हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि इस देश की रफ़्तार को सबसे ज्यादा रोकने वाला एक पहिया है जिसका नाम है भ्रष्टाचार।
भ्रष्टाचार कोई अचानक पैदा हुई बीमारी नहीं है। यह धीरे-धीरे हमारे समाज, हमारी व्यवस्था और कभी-कभी तो हमारे सोचने के तरीके में भी घर कर चुका है। यह किसी एक दफ्तर, एक विभाग, या एक नेता तक सीमित नहीं, यह कहीं न कहीं हम सबके रवैये में घुस चुका है।
हमारा देश सोने की चिड़िया था, लेकिन आज कई बार लगता है कि यह चिड़िया सोने से पहले पिंजरे में कैद है। हम सोचते हैं कि भ्रष्टाचार सिर्फ नेता करते हैं, लेकिन सच यह है कि छोटी रिश्वत देने वाला आम आदमी भी उसी गाड़ी को धक्का देता है। दोस्तों,
जब नौकरी के लिए रिश्वत देनी पड़े,
जब न्याय के लिए पैसे की ताकत लगानी पड़े,
जब विकास के नाम पर बजट खाया जाए,
तो देश सिर्फ कागज़ पर आगे बढ़ता है, असलियत में नहीं।
भारत एक युवा देश है और हमारी आधी से ज्यादा आबादी 30 साल से कम उम्र की है। अगर यह युवा पीढ़ी भ्रष्टाचार को स्वीकार करेगी, तो आने वाले सौ साल भी हम वही बहाने सुनते रहेंगे – "सिस्टम खराब है"। लेकिन अगर यही युवा ठान ले कि "मैं न दूँगा, न लूँगा", तो सिस्टम खुद बदलने पर मजबूर होगा।
भ्रष्टाचार का अंत किसी जादुई कानून से नहीं होगा। यह खत्म होगा जब एक पिता अपने बेटे को ईमानदारी की सीख देगा, जब एक माँ अपने बच्चे को कहेगी कि मेहनत से पास होना ज्यादा गर्व की बात है, जब एक नागरिक अपनी बारी के बिना काम कराने की कोशिश नहीं करेगा।
हम भूल जाते हैं कि भ्रष्टाचार सिर्फ पैसों की चोरी नहीं है बल्कि यह किसी गरीब का हक़ छीनना है, यह किसी मरीज को दवाई से वंचित करना है, यह किसी गांव को सड़क से वंचित करना है। यह चुपचाप हत्या है, और हम सब गवाह बनकर देखते हैं।
तो आइए, आज से यह ठान लें कि हम भ्रष्टाचार को सिर्फ कोसेंगे नहीं, बल्कि उसके खिलाफ खड़े भी होंगे। हम उसे अपनी ज़िंदगी से बाहर निकालेंगे, चाहे कीमत कितनी भी हो क्योंकि ईमानदारी सिर्फ एक गुण नहीं, यह देशभक्ति का सबसे पवित्र रूप है। अगर हम सच में भारत को महाशक्ति बनाना चाहते हैं, तो हमें पहले इसे भ्रष्टाचार से मुक्त करना होगा। और यह लड़ाई सड़क से संसद तक, घर से दफ़्तर तक, और दिल से दिमाग तक लड़ी जाएगी।
जय हिन्द! जय भारत!
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भाषण – 5
जय हिंद दोस्तों! आज मैं किसी को खुश करने नहीं,
बल्कि सच्चाई का आईना दिखाने आया हूँ। तो अगर आपकी आत्मा सो रही है तो संभाल लीजिए, आज इसे जगाने वाला हूँ। ये जो भ्रष्टाचार है ना, ये सिर्फ घूस का दूसरा नाम नहीं, ये हमारे सपनों का कातिल है, ये हमारे भविष्य का चोर है, ये हमारे देश की रगों में जहर है।
हम आज़ाद देश में हैं, लेकिन ये आज़ादी सिर्फ झंडे की नहीं होनी चाहिए बल्कि आज़ादी होनी चाहिए डर से, अन्याय से, और इस सड़े हुए सिस्टम से। अरे, नेता घूस खा रहा है, अफसर घोटाले कर रहा है, ठेकेदार आधी सड़क बना कर बाकी आधी रकम निगल रहा है, और हम? हम खड़े हैं, चुप हैं, बस सिर हिला रहे हैं! क्या ऐसे बदलेंगे हालात?
जब तक हम "चलो यार, यही तरीका है" कहकर घूस देंगे, ये भ्रष्टाचार हमारी नसों में जिंदा रहेगा। ये बीमारी डॉक्टर की दवाई से नहीं जाएगी, ये सिर्फ और सिर्फ हमारी हिम्मत से जाएगी।
दोस्तों, इस देश को भगत सिंह जैसे दीवाने चाहिए थे, और आज भी चाहिए, बस फर्क इतना है कि आज गोलियाँ नहीं, ईमानदारी और हिम्मत का गोला चलाना है।
मैं आज आपसे कहता हूँ अगर आप सच में देशभक्त हो, तो सबसे पहले अपने भीतर से भ्रष्टाचार को खत्म करो। एक छोटी सी रिश्वत से भी इंकार करो, एक गलत काम में भी हाँ मत कहो। याद रखो एक ईमानदार इंसान, हजार भ्रष्ट लोगों के सामने भी झुकता नहीं बल्कि उन्हें झुकने पर मजबूर कर देता है। तो उठो, जागो और कसम खाओ कि अब से "रिश्वत" का शब्द हमारे शब्दकोश में नहीं होगा। हम अपने हक के लिए लड़ेंगे, सिस्टम को साफ करेंगे और इस देश को वो बनाएँगे, जिसका सपना हमारे शहीदों ने देखा था।
भारत माता की जय! वंदे मातरम्!
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भाषण –6
नमस्कार मेरे प्यारे देशवासियों, मेरे छोटे भाइयों-बहनों, आदरणीय बुजुर्गों और साथियों!
आज मैं आपसे किसी बड़े आंकड़े, सरकारी रिपोर्ट या चमचमाती प्रेज़ेंटेशन के सहारे बात नहीं करूँगा। आज मैं आपसे वैसे ही बात करूँगा जैसे एक भाई, एक बेटा, एक दोस्त करता है।
हम सब जानते हैं कि शिक्षा ही वो ताकत है जो किसी गरीब को राजा बना सकती है और एक पूरे देश की तकदीर बदल सकती है। लेकिन सच्चाई ये है कि हमारे देश में आज भी लाखों बच्चे स्कूल तक नहीं पहुँच पाते। और जो पहुँचते हैं, उनमें से भी कई सिर्फ नाम के लिए पढ़ते हैं, क्योंकि पढ़ाई का तरीका, साधन और माहौल सही नहीं है।
कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि जब एक गाँव के बच्चे को स्कूल तक पहुँचने के लिए 5 किलोमीटर पैदल चलना पड़े, जब एक सरकारी स्कूल में मास्टर महीने में मुश्किल से 10 दिन आए, जब किताबें तो मिलें लेकिन समझाने वाला कोई न हो, तो फिर हम कैसा “डिजिटल इंडिया” बना रहे हैं?
दोस्तों, समस्या सिर्फ स्कूल में नहीं है, समस्या सोच में है। हमने पढ़ाई को रटने का खेल बना दिया है। बच्चे सिर्फ पास होने के लिए पढ़ते हैं, असली ज़िंदगी में काम आने के लिए नहीं। हमने शिक्षा को नौकरी पाने की सीढ़ी बना दिया, ज्ञान पाने का ज़रिया नहीं और यही वजह है कि हमारे देश के कई पढ़े-लिखे लोग भी भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और अंधविश्वास में फंसे रहते हैं।
इसीलिए हमें शिक्षा को किताब से निकालकर ज़िंदगी में लाना होगा। अगर बच्चों को विज्ञान पढ़ाना है तो प्रयोगशाला में हाथ लगवाओ, इतिहास पढ़ाना है तो विरासत दिखाओ, खेती पढ़ाना है तो खेत में ले जाओ। शिक्षकों का सम्मान और प्रशिक्षण भी जरूरी है। क्योंकि अगर गुरु ही मजबूर, कमज़ोर या उदास होगा, तो छात्र का जोश कहाँ से आएगा? चाहे बच्चा अमीर हो या गरीब, शहर में हो या गाँव में सबको एक जैसी और अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए। तकनीक का सही इस्तेमाल मोबाइल और इंटरनेट को सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित मत रखो, इन्हें गाँव-गाँव तक पहुँचाकर सस्ती और गुणवत्ता वाली शिक्षा दो।
दोस्तों, शिक्षा सिर्फ स्कूल और किताब की बात नहीं है, ये वो रोशनी है जो अंधेरों को मिटाती है, ये वो ताकत है जो सपनों को हक़ीक़त बनाती है। तो आइए, मिलकर प्रण लें कि हम अपने बच्चों को सिर्फ पढ़ाएँगे नहीं, उन्हें सोचने, समझने और जीने की कला सिखाएँगे। क्योंकि अगर शिक्षा सही होगी तो आने वाली पीढ़ी को किसी क्रांति की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी, वो खुद इस देश को बदल देगी।
भारत माता की जय! वन्दे मातरम!
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भाषण – 7
नमस्कार, आदरणीय मुख्य अतिथि, मंचासीन विद्वानगण, शिक्षकगण, मेरे देश के भविष्य और हमारे नौजवान साथियों।सबसे पहले, आप सभी को भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। आज का दिन वो है, जब हम सिर्फ़ झंडा नहीं फहराते, बल्कि उन लाखों बलिदानों को याद करते हैं जिन्होंने हमें ये हवा में आज़ादी की महक दी।आज का दिन हमें गर्व भी देता है और सोचने पर भी मजबूर करता है।
दोस्तों, हमारा भारत आज दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति है। हमारे पास दुनिया का सबसे बड़ा युवा वर्ग है, अंतरिक्ष में पहुँचने की क्षमता है, और करोड़ों लोगों का सपना है। लेकिन, ये भी सच है कि आज आज़ादी के 79 साल बाद भी, हमारे पुल बनते भी हैं और बनने के कुछ महीने बाद गिर भी जाते हैं। सड़कें बनती भी हैं और बरसात में बह भी जाती हैं और हम नागरिक सालों तक शिकायत करते हैं, फिर अगले चुनाव में भूल जाते हैं। तो क्या यही है आज़ाद भारत का सपना? क्या शहीदों ने अपनी जान दी थी ताकि हम टूटी सड़कों पर खड्डों को गिनते हुए सफ़र करें? हमारी शिक्षा नीति आज भी ज़्यादातर बच्चों को रटने वाला तोता बनाता है, सोचने वाला इंसान नहीं। स्कूल फीस आसमान छू रही है, कॉलेज डोनेशन की मंडी बन चुके हैं, और बेरोज़गार डिग्रियों का ढेर लगाकर घर बैठे हैं। युवा नौकरियों के लिए सालों मेहनत करते हैं, और फिर एग्ज़ाम का पेपर लीक कर दिया जाता है या तो सीटें बेच दी जाती हैं जिससे उनकी उम्मीदें और मेहनत, दोनों का कत्ल हो जाता है। क्या हम इसे सिस्टम कहें या लूट का खुला खेल? और अगर शिक्षा लूट का व्यापार है, तो भविष्य का क्या होगा?
आज हम स्मार्टफोन में 6G चला रहे हैं, लेकिन हवा में 0% शुद्ध ऑक्सीजन ढूँढ रहे हैं। नदियाँ कचरे की नालियों में बदल रही हैं, जंगल कंक्रीट के जंगल में खो गए हैं, और मौसम का हाल ऐसा कि कभी बाढ़ तो कभी सूखा हमें हमारी भूल का हिसाब दे रहा है। याद रखिए,
अगर धरती बीमार हुई, तो न सड़कें बचेंगी, न स्कूल, न सरकार, न हम।
देशभक्ति सिर्फ़ तिरंगा लहराना नहीं, देशभक्ति सिर्फ़ देशभक्ति गीत गाना नहीं, असली देशभक्ति है – सवाल पूछना, भ्रष्टाचार को चुनौती देना, और अपने अधिकारों के लिए लड़ना।
"ख़ामोश रहोगे तो खामोशी बिक जाएगी,
बोलोगे तो सच्चाई लिख जाएगी!"
हम अपने बच्चों को ये नहीं सिखा सकते कि "सब ठीक है", जबकि सच ये है कि बहुत कुछ ठीक नहीं है। लेकिन हम ये ज़रूर सिखा सकते हैं कि देश सिर्फ़ सरकार से नहीं चलता है देश चलता है ईमानदार नागरिकों से, जागरूक युवाओं से, और मेहनत करने वाले हाथों से।
तो आइए, आज इस स्वतंत्रता दिवस पर, हम ये प्रण लें कि हम एक नया भारत बनाएंगे जहां न भ्रष्टाचार होगा, बेरोजगारी होगी, न गरीबी होगी न बेईमानी।
वंदे मातरम्! जय हिंद!
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भाषण – 8
आदरणीय मुख्य अतिथि, मंच पर विराजमान सभी सज्जन पुरुष, मेरे देश के भाईयों-बहनों, और प्यारे बच्चों, आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आज, 15 अगस्त, सिर्फ़ एक तारीख़ नहीं ये हमारे गौरव, हमारी पहचान, और हमारी आत्मा का उत्सव है। ये वो दिन है जब हम याद करते हैं कि हमारी मिट्टी में कितनी ताक़त है, हमारे इतिहास में कितनी गहराई है और हमारे भविष्य में कितनी संभावनाएँ छुपी हैं।
भारत सिर्फ़ एक देश नहीं, एक जीवंत सभ्यता है, जहाँ ऋग्वेद की ऋचाएँ आज भी गूँजती हैं, जहाँ गौतम बुद्ध की करुणा, कबीर के दोहे, और महात्मा गांधी का सत्य हर सांस में बसता है। यहाँ एक ही धरती पर कश्मीर की बर्फीली चोटियाँ, राजस्थान के रेगिस्तान, और केरल की हरी-भरी घाटियाँ अपनी-अपनी कहानी कहते हैं।
अगर कोई पूछे कि प्रकृति ने अपना सबसे सुंदर चित्र कहाँ बनाया, तो जवाब होगा – भारत। उत्तर में हिमालय की गोद, जहाँ बर्फ़ के साथ सूरज की पहली किरणें सोने सा चमकती हैं।पूर्व में चाय के बागान, जहाँ हवा में भी खुशबू बसी है।पश्चिम में थार का रेगिस्तान, जो दिन में आग जैसा है, और रात में तारों की चादर ओढ़ लेता है। दक्षिण में नारियल के पेड़ों की कतारें, जहाँ लहरें आकर हर किनारे को गले लगाती हैं और इन सबके बीच बहती हैं हमारी नदियाँ – गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी जो सिर्फ़ पानी नहीं, बल्कि जीवन की धारा हैं।
भारत की ताक़त सिर्फ़ इसकी ज़मीन या इसकी जनसंख्या में नहीं, बल्कि इसकी विविधता में एकता में है। हम सैकड़ों भाषाएँ बोलते हैं, हजारों रीति-रिवाज अपनाते हैं, लेकिन जब तिरंगा लहराता है तो सबका दिल एक साथ धड़कता है।
दुनिया को शून्य, योग, आयुर्वेद, और अहिंसा का रास्ता हमने दिया। हमने दिखाया कि ताक़त तलवार से नहीं, विचार से आती है। हमने साबित किया कि विकास और अध्यात्म साथ-साथ चल सकते हैं।
तो दोस्तों, 15 अगस्त हमें सिर्फ़ गर्व नहीं देता, बल्कि जिम्मेदारी भी देता है – कि हम अपने देश की इस सुंदरता, इस संस्कृति और इस ताक़त को आने वाली पीढ़ियों तक और भी समृद्ध रूप में पहुँचाएँ।
हम संकल्प लें अपनी नदियों को साफ़ रखेंगे, अपनी वनों की रक्षा करेंगे, अपनी भाषाओं और संस्कृतियों को जिंदा रखेंगे और हर हाल में देश की गरिमा को ऊँचा रखेंगे।
भारत माता की जय! वंदे मातरम्!
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भाषण – 9
आदरणीय मुख्य अतिथि, मंच पर विराजमान सभी माननीयजन, शिक्षकों, अभिभावकों, और मेरे प्यारे बच्चों,आप सभी को मेरा सादर प्रणाम।
आज मैं जिस विषय पर आपसे बात करने आया हूँ, वह सिर्फ़ एक मुद्दा नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी के भविष्य का सवाल है।
तकनीक का विकास एक वरदान था जिसने हमें दुनिया से जोड़ा, ज्ञान की सीमाएँ तोड़ीं। लेकिन धीरे-धीरे यह हमारे बच्चों के मासूम बचपन को निगलने लगी। आज का बच्चा किताब खोलने से पहले स्क्रीन खोलता है, शब्दों से पहले वीडियो देखता है और कहानियों के बजाय, गेम्स की लेवल्स याद रखता है। कभी बच्चे गली में खेलते थे, अब मोबाइल में। कभी दोस्त मोहल्ले में मिलते थे, अब चैट बॉक्स में। लगातार स्क्रीन देखने से बच्चों का ध्यान केंद्रित करने की क्षमता घट रही है। वे जल्दी चिड़चिड़े हो रहे हैं, सच्चे रिश्तों से कट रहे हैं और सबसे ख़तरनाक कि वे किताबों से डरने लगे हैं। किताब, जो कभी दोस्त हुआ करती थी, अब "बोरिंग" लगने लगी है।
किताब सिर्फ़ ज्ञान नहीं देती – वह सोचने की आदत देती है, कल्पना को उड़ान देती है, और इंसान को इंसान बनाती है। एक मोबाइल ऐप आपको एक घंटे मनोरंजन देगा, लेकिन एक अच्छी किताब आपको जीवनभर प्रेरणा दे सकती है। अगर माता-पिता खुद मोबाइल में डूबे रहेंगे,
तो बच्चे भी वैसा ही करेंगे। बच्चों को किताबों से जोड़ना है, तो पहले हमें खुद उससे जुड़ना होगा। मोबाइल और सोशल मीडिया का समय तय करें। हर दिन कम से कम एक घंटा सिर्फ़ पढ़ने के लिए रखें। शिक्षा को बोझ नहीं, साहसिक यात्रा बनाएं। कहानियों, खेलों, और चर्चा के ज़रिए किताबों में दिलचस्पी जगाएं। गाँव, मोहल्ले और स्कूलों में छोटी-छोटी पुस्तकालय बनाएं जहाँ बच्चे किताबें लेकर जा सकें, और उनकी कहानियों पर आपस में चर्चा कर सकें। बच्चों को किताब पढ़ने पर सराहें और उनकी उपलब्धियों को सबके सामने पहचान दें।
मैं यह नहीं कहता कि मोबाइल और तकनीक बुरी है।
अगर सही तरह से इस्तेमाल हो, तो यह अद्भुत साधन है।
लेकिन यह साधन ही लक्ष्य न बन जाए तो यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है। अगर हम आज अपने बच्चों को किताबों से दूर जाने देंगे, तो कल वे जीवन की असली परीक्षा में हार सकते हैं। लेकिन अगर आज हम उन्हें ज्ञान, विचार और नैतिकता की नींव देंगे, तो आने वाला भारत ज्ञान, विज्ञान और संस्कार तीनों में अव्वल होगा।
तो आइए, हम सब संकल्प लें कि हम बच्चों को सिर्फ़ मोबाइल यूज़र्स नहीं, बल्कि विचारक, खोजकर्ता और सच्चे इंसान बनाएँगे।
भारत माता की जय। वन्दे मातरम!
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भाषण – 10
मैं सबसे पहले स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर आप सबों को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। दोस्तों सदियों पहले भारत को "सोने की चिड़िया" कहा जाता था। क्यों? क्योंकि हमारे पास सोना-चांदी, मसाले, कपास, रेशम, अद्भुत कला-कौशल और ज्ञान का भंडार था। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय दुनिया भर से विद्वानों को आकर्षित करते थे। हमारी सभ्यता, संस्कृति और विज्ञान का स्तर इतना ऊँचा था कि विदेशी यात्री भी दंग रह जाते थे।
कई सदियों में अलग-अलग आक्रमणकारियों ने भारत पर हमला किया, लेकिन असली गुलामी की जंजीरें 1757 के प्लासी के युद्ध से शुरू हुईं, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर कब्ज़ा किया। धीरे-धीरे उनका व्यापार शासन में बदल गया और पूरे भारत पर अंग्रेजों का शिकंजा कसता चला गया। अंग्रेज़ों ने भारत की अर्थव्यवस्था लूटी। हमारे किसान मजबूरी में ऊँचे कर देते-देते कंगाल हो गए। हमारी कपड़ा मिलें और हस्तशिल्प उद्योग बर्बाद कर दिए गए, ताकि इंग्लैंड का माल बिके। हमारी संस्कृति, हमारी भाषा और यहां तक कि हमारे अपने अधिकार भी छीन लिए गए।
आप सोचिए अपने ही देश में अपने झंडे को फहराना अपराध था, अपने ही खेत का अनाज खुद खाना गुनाह था। लेकिन भारतियों का खून कभी ठंडा नहीं पड़ा। 1857 में मंगल पांडे की चिंगारी ने पूरे देश में क्रांति की आग लगा दी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, बेगम हज़रत महल – इन वीरों ने अंग्रेज़ी हुकूमत की नींव हिला दी। हालाँकि यह क्रांति दबा दी गई, लेकिन आज़ादी की लौ बुझी नहीं।
19वीं और 20वीं सदी में आज़ादी का आंदोलन एक नए चरण में पहुंचा। बाल गंगाधर तिलक ने "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है" का नारा दिया। महात्मा गांधी ने 1915 में भारत लौटकर सत्याग्रह और अहिंसा का मार्ग दिखाया। डांडी मार्च ने नमक कानून तोड़ा और पूरे देश में एकजुटता फैलाई। क्रांतिकारी आंदोलन ने आज़ादी की लड़ाई को और तेज़ किया। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने हँसते-हँसते फाँसी का फंदा चूमा। चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा – "मैं आज़ाद था, आज़ाद हूँ और आज़ाद ही रहूँगा।" इनकी कुर्बानियों ने हर युवा के दिल में क्रांति की आग जला दी।
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियाँवाला बाग में हजारों लोग एकत्र हुए। जनरल डायर ने बिना चेतावनी के गोलियां चलवा दीं – सैकड़ों लोग वहीं शहीद हो गए। यह घटना अंग्रेजी राज के क्रूर चेहरे की सबसे बड़ी गवाही बन गई। 1942 में महात्मा गांधी ने "भारत छोड़ो" आंदोलन का आह्वान किया। "करेंगे या मरेंगे" – यह नारा पूरे देश में गूंज उठा। अंग्रेज़ों के लिए भारत में शासन करना असंभव हो गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेज़ी साम्राज्य कमजोर पड़ चुका था। आखिरकार, 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को भारत स्वतंत्र हुआ। लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा लहराया और पंडित नेहरू ने कहा –
"At the stroke of the midnight hour, India will awake to life and freedom."
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। आज़ादी सिर्फ़ हथियार से जीती नहीं जाती, उसे बनाए रखने के लिए एकजुटता, शिक्षा, ईमानदारी और कड़ी मेहनत की जरूरत होती है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का सपना था गरीबी मुक्त, अशिक्षा मुक्त, और समानता से भरा भारत। तो आइए इस पावन दिन पर ये शपथ लें कि हम उन शहीदों के सपनों को आवश्य पूरा करेंगे।
जय हिंद! जय भारत!
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