बादल का फटना: एक आपदा
![]() |
बादल का फटना: एक आपदा | Article On Cloudburst | The NK Lekh |
परिचय:
बादल फटना (cloudburst) मूसलाधार बारिश का एक चरम रूप है, जिसमें कुछ ही मिनटों में अतिवृष्टि हो जाती है और क्षेत्र में अचानक बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, यदि किसी 10–20 वर्ग किलोमीटर के छोटे क्षेत्र में एक घंटे में 100 मिमी या उससे अधिक बारिश हो जाए, तो इसे बादल फटना माना जाता है। आसान भाषा में कहें तो यह ऐसा है जैसे आकाश से किसी छोटे इलाके पर बाल्टी भर-भर कर पानी गिरा दिया गया हो। इतनी तेज बारिश को जमीन सोख नहीं पाती और तत्काल बहाव शुरू हो जाता है, जिससे flash flood जैसी आपदा आ जाती है।
बादल फटने की प्रक्रिया:
बादल फटना मुख्यतः पहाड़ी इलाकों में होता है, जहाँ ओरोग्राफिक लिफ्टिंग की प्रक्रिया सक्रिय होती है। मानसून की नमी-भरी हवाएँ (बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से उठी) हिमालय या अन्य पहाड़ों से टकराकर ऊपर उठती हैं, जिससे ठंडी वायु से मिलकर घने क्यूम्यूलोनिम्बस बादल बनते हैं। ये विशाल बादल भारी वर्षा की बड़ी-बड़ी बूंदों को धारण कर सकते हैं। जब बादल अत्यधिक भारी हो जाते हैं, तो वे किसी बिंदु पर अचानक फट जाते हैं और तेज बारिश की बरसात करते हैं। कभी-कभी मैदान से उठी गर्म हवा भी पहाड़ी बादलों को भरा देती है; उदाहरण के लिए, 26 जुलाई 2005 को मुंबई में बादल उस समय फटे जब जमीन से उठी गर्म हवा उनसे टकराई थी। इन सभी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप सीमित क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा हो जाती है।
कारण:
(i) प्राकृतिक कारण
भू-आकृति और हवाएँ: हिमालय जैसे ऊँचे पर्वत नमी से भरी हवा को ऊपर उठने के लिए मजबूर करते हैं। ओरोसाफिक लिफ्ट के कारण हवा ठंडी हो कर संघनित होती है और भारी वर्षा करती है। मॉनसून के दौरान बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से आने वाले बादल इन पर्वतों से टकराकर अचानक फटते हैं।
हवाओं का मिलन: कभी-कभी अलग-अलग दिशाओं से आने वाली गर्म और ठंडी हवाओं का संगम भी अचानक भारी बरसात का कारण बन सकता है।
(ii) मानवजनित कारण
जंगलों की कटाई और अनियोजित निर्माण: पहाड़ी क्षेत्रों में वृक्षों की कटाई होने पर मिट्टी पानी को सोख नहीं पाती। खड़ी ढलानों पर बिना योजना के बने घर, सड़क और अन्य निर्माण बारिश के पानी का मार्ग बदल देते हैं। इनसे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
(iii) जलवायु परिवर्तन
ग्लोबल वार्मिंग: बढ़ता तापमान वायुमंडलीय आर्द्रता (नमी) में वृद्धि करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, हवा का तापमान 1°C बढ़ने पर उसमें लगभग 7% अधिक नमी समा सकती है, जिससे बादल फटने जैसी घटनाएं और तीव्र हो रही हैं। हिमालयी क्षेत्रों में तापमान बढ़ने की दर ग्लोबल औसत से अधिक है, इसलिए यहाँ निरंतर और तीव्र बादल फटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
ग्लेशियरों का पिघलना: गर्मी बढ़ने से हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे वायुमंडल में अतिरिक्त नमी मिलती है और बादलों का निर्माण बढ़ता है। इससे भी भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
प्रभाव (परिणाम):
बादल फटने से उत्पन्न अचानक बाढ़ और मलबा निम्नलिखित विनाशकारी प्रभाव लाता है:
प्रचंड बाढ़: तेज वर्षा से नदियाँ और नाले भर जाते हैं, जिनका पानी सड़कों, पुलों और घरों को बहाकर दूर तक ले जाता है। उदाहरण के लिए, 5 अगस्त 2025 को उत्तराखंड के धराली गाँव में अचानक आई बाढ़ ने पूरे गाँव को तबाह कर दिया। यह पानी इतनी तेजी से बहा कि कई मकान और दुकानें बह गयीं।
भूस्खलन: बारिश के पानी ने पहाड़ी ढलानों को कमजोर कर दिया, जिससे कई जगह भूस्खलन हुए। भारी मलबा, पत्थर और पेड़-डाल पानी के साथ बहने लगे। इनसे सड़कों और पुलों को क्षति हुई। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और शिमला में भी बादल फटने से सड़कें, मकान और खेत बह गए।
जान-माल की हानि: इस आपदा में लोग पल भर में अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। उदाहरण के तौर पर, जून 2013 में उत्तराखंड (केदारनाथ) में हुई भीषण आपदा में अनुमानित 6,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। इसी प्रकार, अगस्त 2025 में किश्तवाड़ (जम्मू-कश्मीर) में बादल फटने की घटना में कम से कम 46 लोगों की जान चली गई और कई घायल हुए। पशु-पक्षी भी तेज बहाव में बह जाते हैं, और पेड़-पौधे कटकर मिट्टी में मिल जाते हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव: भारी बहाव से मिट्टी कटाव होता है, खेत-खलिहान बर्बाद हो जाते हैं, नदियाँ अवरुद्ध हो सकती हैं। दीर्घकाल में इन घटनाओं से पौधों का जीवन प्रभावित होता है और जल स्रोत प्रदूषित हो सकते हैं।
प्रमुख घटनाएँ:
उत्तराखंड केदारनाथ (जून 2013): कई दिनों तक लगातार हुई तीव्र बारिश और बादल फटने से भारी बाढ़ और भूस्खलन हुआ, जिससे उत्तराखंड में 6,000 से अधिक लोग मारे गए और 4,500 से ज्यादा गाँव प्रभावित हुए।
उत्तरकाशी धराली (अगस्त 2025): 5 अगस्त 2025 को आए बादल फटने ने धाराली गाँव में भारी तबाही मचा दी। इस घटना में दर्जनों लोग मरे-गए और गाँव का काफी हिस्सा मलबे में दब गया।
किश्तवाड़ (अगस्त 2025): Machail माता यात्रा मार्ग पर 14 अगस्त 2025 को बादल फटने से तेज बहाव आया, जिसमें 46 से अधिक लोगों की मौत हुई और सैकड़ों लोग फंसे रहे। यह घटना तीव्र बाढ़ के रूप में सामने आई।
अन्य घटनाएँ: हिमाचल प्रदेश, बिहार, मिजोरम आदि जगहों पर भी बादल फटने की ताजा घटनाएँ देखी गई हैं। पड़ोसी देशों में भी विनाशकारी घटना हुई है – पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में अगस्त 2025 में हुए बादल फटने से 300 से अधिक लोग मारे गए।
बचाव और प्रबंधन:
बादल फटने को पूरी तरह रोकना असंभव है, लेकिन पूर्व चेतावनी और सतर्कता से नुक़सान घटाया जा सकता है:
पूर्व चेतावनी: भारतीय मौसम विभाग (IMD) और निजी एजेंसियाँ अब डॉपलर रडार, उपग्रह और उन्नत मॉडल का प्रयोग करती हैं। वे भारी वर्षा की आशंका वाले क्षेत्रों के लिए अलर्ट जारी करते हैं। इसके अलावा मोबाइल ऐप (जैसे ‘मौसम’ और ‘IMD Weather’) के जरिए भी ताज़ा मौसम अपडेट मिलते रहते हैं।
बचाव दल: आपदा होने पर राज्य और केंद्र सरकार के दल तुरंत मुस्तैद हो जाते हैं। एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल), एसडीआरएफ (राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल), पुलिस, सेना और स्थानीय स्वयंसेवक बचाव-राहत कार्य में लगे रहते हैं। हेलीकॉप्टर और एम्बुलेंस तैनात करके घायल तथा फंसे हुए लोगों को निकाला जाता है।
सरकारी भूमिका: प्रभावितों को तत्काल राहत मुहैया कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें परिचालित होती हैं। प्रभावित परिवारों को अनाज, पानी, दवाएं और अस्थायी आश्रय दिया जाता है। प्रधानमंत्री या राज्य के मुखिया राहत कार्य की निगरानी करते हैं और “हर संभव सहायता” का आश्वासन देते हैं।
सामान्य तैयारियाँ: आमजन को मौसम अपडेट पर ध्यान देना चाहिए। भारी बारिश की चेतावनी मिलने पर पर्वतीय क्षेत्रों की यात्रा टालें और सुरक्षित स्थान पर रहें। अपने साथ टॉर्च, पीने का पानी, सूखे भोजन और प्राथमिक चिकित्सा किट जरूर रखें। नदी-नाले के पास या ढलानों पर न रुकें; ऊँचे मैदान या पहाड़ी चोटी पर चले जाएँ।
दीर्घकालीन उपाय: पहाड़ों पर अनियोजित विकास और जंगलों की कटाई रोकनी चाहिए। पेड़ मिट्टी को बांधे रखते हैं, जिससे भूस्खलन का खतरा कम होता है। साथ ही मौसम भविष्यवाणी के लिए अधिक रडार और हाई-रिज़ॉल्यूशन मॉडल विकसित किए जाने चाहिए ताकि स्थानीय स्तर पर चेतावनी और भी सटीक दी जा सके।
बादल फटना एक जटिल प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन जागरूकता, तकनीकी मदद और उचित प्रबंधन से इसके भयावह परिणामों को कम किया जा सकता है।
Thanks For Reading!
The NK Lekh (Neeraj Vishwakarma)
Comments
Post a Comment