दिशाेम गुरु: शिबू सोरेन
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| Shibu Soren The Jharkhand Maker| The NK Lekh |
शिबू सोरेन : झारखंड आंदोलन के संघर्षशील जननायक
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड (तत्कालीन बिहार) के गिरिडीह जिले के नेमरा गांव में हुआ था। वे संथाल जनजाति से आते हैं। उनके पिता एक साधारण किसान थे जिन्हें जमींदारों और महाजनों के शोषण का शिकार होना पड़ा। बचपन से ही शिबू सोरेन ने गरीबी और अन्याय का अनुभव किया। यही अनुभव आगे चलकर उनके संघर्ष का आधार बना।
झारखंड क्षेत्र लंबे समय तक शोषण और उपेक्षा का शिकार रहा। आदिवासी समाज अपनी जमीन, जंगल और जल के अधिकारों से वंचित था। महाजनी प्रथा और जमींदारी व्यवस्था ने आदिवासियों की स्थिति को और बदतर बना दिया था। शिबू सोरेन ने अपने गांव और आसपास के क्षेत्रों में आदिवासियों को संगठित करना शुरू किया।
उन्होंने महाजनी और जमींदारी प्रथा के खिलाफ आंदोलन छेड़ा। जमीन से बेदखल किए गए आदिवासियों के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी। इसी कारण उन्हें लोग "धरती आबा" (धरती के पिता) कहने लगे।
1973 में शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और ए के रॉय ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की जिसका महासचिव शिबू सोरेन को बनाया गया। यह संगठन आदिवासियों और वंचितों के हक की आवाज़ बना। JMM ने जंगल, जमीन और खनिज संपदा पर आदिवासियों के अधिकार की मांग को बुलंद किया।
उनके नेतृत्व में हजारों आदिवासी लोग सड़कों पर उतरे। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था –
✳️झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना,
✳️आदिवासियों को जमीन और रोज़गार का अधिकार दिलाना,
✳️प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय लोगों का हक सुनिश्चित करना।
शिबू सोरेन तीन बार लोकसभा सदस्य बने और केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी रहे। उनका राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा, लेकिन उन्होंने हमेशा झारखंड के लोगों के हित को प्राथमिकता दी।
2000 में जब बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य का गठन हुआ, तब इसके पीछे शिबू सोरेन और उनके साथियों के लंबे संघर्ष की अहम भूमिका थी।
शिबू सोरेन झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि उनके कार्यकाल छोटे रहे, फिर भी उन्होंने आदिवासी समाज की बेहतरी के लिए कई योजनाएं चलाईं।
उनका जीवन सिर्फ संघर्ष से नहीं, बल्कि विवादों से भी जुड़ा रहा। कभी उन पर राजनीतिक आरोप लगे, तो कभी कानूनी चुनौतियाँ सामने आईं। लेकिन इन सबके बावजूद वे लगातार झारखंड की जनता के बीच “आदिवासी अस्मिता के प्रतीक” बने रहे। इस महान नेता ने 4 अगस्त 2025 को दुनिया को अलविदा कहा।
शिबू सोरेन का जीवन एक संघर्ष और संघर्षशील नेतृत्व की कहानी है। गरीबी और अन्याय से जूझते हुए उन्होंने आदिवासी समाज को आत्मसम्मान दिलाने की कोशिश की। वे सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि झारखंडी अस्मिता और संघर्ष के प्रतीक हैं।
धन्यवाद!
~ The NK Lekh (Neeraj Vishwakarma)

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